महेश प्रसाद
रायपुर। महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय साकरा पाटन दुर्ग का एक और मामला वित्तीय अनियमितता से जुड़ा पाया गया।
ज्ञात हो कि पिछले अंक में DD समाचार ने वित्तीय अनियमित्ताओं को अंजाम दे रहे है कुल सचिव के नाम शीर्षक से खबर का प्रकाशन किया था, इसके बाद श्री खरे जी का जो पक्ष आया उसमे उल्लेख किया गया है कि -
मुझे आपने इस खबर से सतर्क और सचेत कराए है। हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। मेरे पास कोई प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार ही नहीं है। मुझे शासन व विश्वविद्यालय के छात्र हित में काम करना है, कर भी रहा हूं। प्रथम कुलपति के हटने के बाद उनसे कुछ नुमाइंदे फर्जी हस्ताक्षर कर शिकायत किए है। आप अवलोकन कर सकते है।
और इसी अवलोकन की कड़ी में एक और खुलासा सामने आया। इस खुलासे में हमारे हाथ एक बिल और सप्लाई ऑर्डर की कापी लगी।
विदित हो कि दिनांक 5/7/24 को आइटम नंबर 700003522 एक नग, आइटम नम्बर 700003509 एक नग, आइटम नंबर 700004359 दो नग और आइटम नम्बर 700004358 एक नग का सप्लाई ऑर्डर निकाला गया। सप्लाई ऑर्डर CSIDC दर पर फोटोकापी मशीन प्रदाय करने के लिए की गई थी लेकिन CSIDC यानि ऑनलाइन टेंडर प्रक्रिया को मैन्युअल किया गया। अब समझिए की क्या है CSIDC। छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) छत्तीसगढ़ सरकार का एक उपक्रम है (कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत) जो वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में है। सीएसआईडीसी राज्य में औद्योगिक विकास को सुविधाजनक बनाने और बढ़ावा देने के लिए नोडल एजेंसी है। सरकार चाहती है कि शासन की खरीदी पारदर्शी तरीके से हो इसलिए CSIDC के पोर्टल से ऑनलाइन निविदा आमंत्रण निकाला जाय और इसमें वही भाग ले सके जो CSIDC में पजीकृत निर्माणकर्ता या अधिकृत प्रदायकर्ता हो लेकिन यहां मैन्युअल खरीदी की गई यानी यह खरीदी वित्तीय अनियमितता को दर्शाता है। क्या वजह रही कि खरीदी मैन्युअल की गई?, वेरिफाई आफिसर के रहते हुए कुलसचिव को वेरिफाई करना पड़ा तो इसको समझे। दरअसल सी.एस.आई.डी.सी. का नियम है कि क्रय किये जाने वाले सामग्री का सप्लाई आदेश e-manec वेबसाइट से किया जाना चाहिये था किन्तु कुलसचिव ने क्रय अधिकारी के द्वारा चलाई गयी क्रय नस्ती को अपने पास रोक कर नस्ती में कूटरचना की और मैन्यूअल सप्लाई आदेश दिया । भ्रष्टाचार की बू तब और गंध देने लगी जब मीडिया अवलोकन के दौरान ज्ञात हुआ कि क्रय नस्ती, क्रय अधिकारी के द्वारा 432000/- के सामानों की खरीदी के लिये चलाई गयी थी पर उसे रोका गया। थोड़ा और समझिए कि वित्तीय अनियमितता हम क्यों कह रहे है.....सप्लाई आदेश जारी करने के लिये विश्वविद्यालय के कुलपति जिसको क्रयअधिकारी नामित करे वही सप्लाई आदेश जारी कर सकता है। चूकि विश्वविद्यालय की सी.एस.आई.डी.सी. या केन्द्र की वेबसाईट GEM से खरीदी हेतु आई.डी. और पासवर्ड की जरूरत पड़ती हो जो क्रयअधिकारी के पास ही होता है, इसलिए मजबूरन साहब को अपना मर्जी चलाने और अपने चहेते को लाभ देने के लिए मैन्युअल निविदा या सप्लाई ऑर्डर जारी करना पड़ा। खैर मामला यही नहीं रुका है। बिना आबंटन के खरीदी वाहन का उपयोग भी नियम विरुद्ध है, जो जांच और सीधे एक्शन लेकर कार्यवाही करने के बाद ही विश्वविद्यालय में लगे दाग को धोया जा सकेगा।
जानकारी यह भी मिल रही है कि साहब अपना मर्जी चलाने के लिए क्रय अधिकारी के दायित्व को हटाकर खुद क्रय अधिकारी बन बैठे है। फिलहाल मामले और भी है, जिसका खुलासा परत दर परत करते रहेंगे, जब तक कार्यवाही ना हो। इस विषय में साहब का पक्ष रखने के लिए संपर्क किया जायेगा ताकि अगले अंक में उनके पक्ष का प्रकाशन हो सके और खबर को एक पक्षीय का आधार ना बनाया जा सके।