*थमने का नाम नहीं ले रहा वन भूमि पर अवैध कब्जा और पेड़ों की कटाई।*

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*थमने का नाम नहीं ले रहा वन भूमि पर अवैध कब्जा और पेड़ों की कटाई।*

 



सोनू कश्यप प्रतापपुर। प्रतापपुर खबर प्रकाशन एवं ध्यानाकर्षण के बाद भी आज तक किसी प्रकार का जांच करवाई तो दूर वन विभाग ने जांच करना तक जरूरी नहीं समझा 500 से 700 एकड़ में वनों की अवैध कटाई, वन भूमि पर अवैध कब्जा सहित जुताई के मामले में अब तक कोई ठोस करवाही नही होने पर वन विभाग के कार्य शैली पर सवाल खड़े हो रहे है आपको बता दे की वन परिक्षेत्र प्रतापपुर अंतर्गत केवरा जंगल पीएफ 17 जंगल में अंधाधुन पेड़ों की कटाई के मामला सामने आया था, वही वन विभाग ने इतना बड़ा मामला होने के बाद भी आज तक किसी प्रकार का कार्रवाई करने पर चुप्पी ले ली है।

 ना जिले के कलेक्टर न डीएफओ का डर ना वन संरक्षण अधिकारी सी एफ का डर ना वन मंत्री का न शासन प्रशासन का किसी प्रकार का कोई डर ना भए होने के कारण वन विभाग की मिली भगत से करोड़ों रुपए की इमरती लकड़ियों का चिराई करके, वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित लकड़ी तस्करों की सहायता से बालू का ट्रक में लोड कर कीमती लकड़ियों को उत्तर प्रदेश लकड़ी तस्कर भेज दिए।


*चारों तरफ जंगल ठूठ में तब्दील है, फॉरेस्ट विभाग के एसडीओ रेंजर, वन विभाग के कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।*




 पूर्व कुछ दिन में प्रमुख अखबारों में खबर प्रकाशन के बाद भी आज तक वन विभाग के अधिकारियों में सांफ तौर पर मनमानी व जंगलों का कटाई का सिलसिला अब तक जारी है। जंगलों की अवैध कटाई जोरोशोरों से चल रहा है तथा वन भूमि पर कब्जा करने का होड़ मचा हुआ है। 500 एकड़ से 700 एकड़ के लगभग भूमि पर अवैध कब्जा घर बनाकर वन भूमि का जुताई कर दिया गया है। तथा कई वर्ष पुराने वृक्षों को काटकर पटरा निकालकर, गोला बेच दिया गया, हर जगह काटी गई लकड़ियों का ठूठ देखी जा सकती है। तथा कई जगह तो जंगल में जानबूझकर आग लगने का भी निशान देखे जा सकते हैं।

इतना व्यापक मात्रा में लकड़ी काटने के बाद भी वन विभाग अभी तक मौन धारण कियूं हुआ है या कार्यवाही करने से बच रहा है क्योंकि इनका काला कारनामा सामने आ जाएगा वहीं पिछले हफ्ते पेड़ कटाई का मामला को लेकर ग्रामीणों में भी काफी खासा आक्रोश देखा गया था जो की जांच का नाम से अब तक वन विभाग बचता रहा है।

सवाल अभी यहां खड़ा होता है कि इतने भारी संख्या में पेड़ों की अवैध कटाई का मामला पर अधिकारी चुपी साधे हुए हैं या अपने निचले स्तर के अधिकारियों को बचाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है इससे पता चलता है कि प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में किस तरह का भ्रष्टाचार और दिया तले अंधेरा देखा जा रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो आने वाला वक्त में कीमती पेड़ों की अवैध कटाई चरम सीमा पर होकर वन वीरान हो जाएगा।जहां जांच के नाम से खानापूर्ति कर अपने दामन में लगे हुए दाग को छुपाने में वन विभाग निष्क्रिय है। 

 क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है वहीं शासन प्रशासन का इनके ऊपर किसी प्रकार का दबाव कार्यवाही नहीं होने के कारण हौसला बुलंद है। और इससे साफ जाहिर होता है कि इस काले कारनामा में इनकी मिली भगत के बिना किसी प्रकार का अवैध कारोबार संपन्न नहीं हो सकता।

क्योंकि प्रमुख अखबारों में समाचार प्रकाशन के बाद इनके कानों में जूं तक नहीं रेंगी जिसकी शिकायत अब मुख्यमंत्री सहित वन मंत्री दिल्ली वन पर्यावरण विभाग मुख्य सचिव तक शिकायत की जाएगी, क्योंकि जिले के डीएफओ, सी सी सीएफ, एसडीओ, की भी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।इतना व्यापक पैमाने में लकड़ियों का कटाई का मामला का माहौल गरमाता जा रहा है। और ग्रामीणों सहित वन प्रेमियों ने कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग मांग किए हैं। अन्यथा आने वाले समय में इसका दुष परिणाम भुगतना पड़ेगा


*आखिर कब तक होता रहेगा भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार, कर वही नहीं होने से इनके हौसले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अधिकारी नहीं करते जंगलों की निरीक्षण।*

 


एक वर्ष पूर्व वन विभाग द्वारा लगाए गए नर्सरी प्लांटेशन के पास पीएफ 17 के जंगलों में वन विभाग के द्वारा पौधों का प्लांटेशन पिछले वर्ष किया गया था जिस पर हजारों की संख्या में पौधे लगाए गए थे। जिसको वन विभाग ने सही तरीके से प्लांटेशन का देखरेख नहीं कर पाए बाद में मरे हुए पौधों को अपनी कारनामा छुपाने की वजह से कुछ दिन पूर्व प्लांटेशन में आग लगाने का भी मामला सामने आया था जो प्रमुखता से खबर प्रकाशित की गई थी इस मामले में भी जांच के नाम लीपा पोती कर दी गई और करोड़ों रुपए का चूना शासन को लगा दिया गया जो आज भी जांच के विषय बनता है। और अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं। 

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